शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

यह है दीदी की रेल, ममता न मेल

यह है ‘दीदी’ की रेल, न ‘ममता’ न मेल। जाने कब डिटेन हो जाए’ और न जाने कब हो जाए फेल
आरक्षण की बोगी में रेलमपेल व धक्‍का, न जाने कब सिर फूटे और माल ले जाए उचक्‍का, यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
कहीं छकावे किन्‍नर टोली कहीं डरावे खाकी,  देख मुसाफिर आंख खोल रक्षक ही बने हैं भक्षक, यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
उत्‍तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम सभी दिशा ले जाए, यूपी में भइया बोले तो बिहारी डेरावे, बंगाल में दादा भी दादागिरी दिखावें, यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
यूपी पुलिस बदनाम है भइया, पंजाब की वर्दी भारी, आते-जाते लोगों की जेब टटोलें ये मुलाजिम सरकारी, यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
खानपान के नाम पर हो रही खूब उगाही, जहरखुरानों के आतंक से सहमें हर नर-नारी, डिब्‍बे में चना-चाय बेचते घूम रहे अपराधी। यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
आरक्षण का टिकट पर सीट की मारामारी, उठते ही सीट बिक जाए जेब करे जो भारी, पानी-खाना ऐसा मिलता जेहसे बढै बीमारी। यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल
यात्री की रक्षा नहीं, न ही नारि सुरक्षित, हर ओर दुष्‍सान मिलते हैं कैसे अबला रहें सुरक्षित। यह है दीदी की रेल, न ममता न मेल

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