रविवार, अक्तूबर 25, 2009

सड़क पर हो रही मौतों के लिए खुद भी हैं जिम्‍मेदार

आपराधिक घटनाओं की तुलना में चार गुना से भी अधिक लोग सडक दुर्घटनाओं में असमय काल कावलित हो रहे हैं। यह त्रासदी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है लेकिन सरकारें हों या उसकी मशीनरी, हर कोई कुम्‍भकर्णी नींद में सो रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सड़क हादसों में सर्वाधिक मौतें टीन एजर या युवाओं की होती है। इसके बावजूद माता-पिता अपने किशोरवय बच्‍चों को तेर रफ़तार बाइक तोहफे में दे रहे हैं। हद तो अब हो रही है कि स्‍कूलों को जाने-आने के लिए छात्र-छात्राएं दुपहिया वाहनों से ऐसे फर्राटा भरते देखे जा सकते हैं जैसे वे किसी बाइकर्स गिरोह के सदस्‍य हों। इस बारे में खबरे कभी-कभार मीडिया में भी आती रहती हैं लेकिन अभिभावकों में कोई संजीदगी नजर नहीं आती। वे अपने बच्‍चों को मौत का सामान मुहैया कराने में पीछे नहीं हैं। यूपी के फैजाबाद जैसे छोटे जिले में सड़क दुर्घटना में हर साल तकरीबन सौ लोगों की मौत को रही है जबकि तीन सौ के करीब लोग शारीरिक अपंगता का का दंश झेलते हैं। इसके बावजूद यातायात नियमों की खिल्‍ली उड़ाने में हमारा सुशिक्षित समाज कतई पीछे नहीं है। ओवर लोडिंग और तेज रफ़तार मानों गहना बन चुका है। सुरक्षा की अनदेखी भी खूब हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सड़क हादसे कैसेट रोके जा सकते हैं। जवाब बिल्‍कुल आसान है। वाहन चालकों पर कार्रवाई के बजाय वाहनों की रफ़तार को रोका जाय। नये वाहनों में ऐसे उपकरण लगाये जाएं जिससे उनकी रफ़तार मानकों के अनुकूल हो। हालांकि यह बात सरकार या उसकी मशीनरी को समझ में आये तब हो सकता है।

मंगलवार, अक्तूबर 20, 2009

गरीबों की हर रात काली

अमीरों की होती जगमग दीवाली, गरीबों की हर रात काली
आओ हम भी खुशियों के दीप जलाएं जिसमें इक दीया गरीबों का भी हो शामिल
न पटाखे न शोर और धमाके, बस बोलिये मीठी वाणी शायद ऐसे में उन गरीबों की भी मन जाय दीवाली

किचकिच ने उसे जो हथियार उठाने को मजबूर किया

जहां लोग दीपावली पर खुशियां मना रहे वहीं वहीं मदन बिहारी और उनके पडोसी रमेश के बीच तकरार चल रही थी। आये दिन की तकरार से आजिज आकर एक संभ्रान्‍त व्‍यक्ति आखिरकार बंदूक उठाने को मजबूर हो गया। वह व्‍यक्ति कोई और नहीं बल्कि मदन बिहारी थे। उन्‍हें इस बात की टीस थी कि जिस रमेश की उन्‍होंने कभी मदद की थी वही आज उनके लिए कंटक साबित हो रहा है। रोज-रोज का विवाद खत्‍म कर देने के मकसद से मदन बिहारी अपनी लाइसेंसी बंदूक के साथ घर से निकले पिफर वापस नहीं लौटे। अगले दिन उन्‍होंने सम्‍मान को चुनौती देने वाले रमेश नामक युवक को दिन-दहाड़े गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया। यह घटना किसी सम्‍पत्ति विवाद या बदले की भावना से नहीं हुई बल्कि रोज-रोज की किचकिच अहम वजह बनीं।