रविवार, जनवरी 23, 2011

गणतंत्र बनाम गनतंत्र

देश की आजादी को छह दशक बीत चुके हैं। धीरे-धीरे लोकतंत्र प्रौढ़ हो रहा है। ऐसे में लोकतंत्र में सियासी फसल काटने को बेताब स्‍वार्थी लोगों के बीच गनतंत्र का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। मंत्री, सांसद, विधायक और अन्‍य जनप्रतिनिधि इस नए तंत्र के बिना शायद खुद को अधूरा समझते हैं। इसी कारण सरकारी से लेकर निजी स्‍तर पर उनके कुनबे में गन वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। ऐसे में गणतंत्र की स्‍थापना की वर्षगांठ पर जश्‍न के क्‍या मायने हैं, इसे भी सोचना होगा। राशन की दुकानों से लेकर विकास कार्यों के टेंडरों लेने तक  सब जगह गनतंत्र का ही बोलबाला नजर आ रहा है। गरीबों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है, दबंग और बाहुबली ही उन पर राज करते नजर आ रहे हैं। छोटे व कमजोर लोगों की तब तक सुनवाई नहीं होती जब तक वह कानून को हाथ में लेने की स्थिति में नहीं आ जाते। इन हालातों में 26 जनवरी, 15 अगस्‍त और 2 अक्‍टूबर मनाने की परंपरा महज दिखावा बनती जा रही है। इन कार्यक्रमों में नेता हों या अफसर सभी सत्‍य, अहिंसा और ईमानदारी के लिए लंबे-लंबे भाषण देने से गुरेज नहीं करते। लेकिन उनकी यह नसीहत महज कार्यक्रम तक ही सीमित रह जाती है। अगले ही दिन जब वह अपने कार्यालय में होते हैं तो सुर, लय और ताल सब दूसरे हो जाते हैं। भ्रष्‍टाचार के बारे में घंटों बयानबाजी करने वाले नौकरशाहों या जनप्रतिनिधियों से उनकी ईमानदारी के बारे में पूछा जाए तो शायद कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं। इतना ही नहीं यदि मीडिया उनकी बेईमानी की राह में रोड़ा न बन जाए तो देश के महत्‍वपूर्ण संस्‍थान और ऐतिहासिक इमारतें भी वह अपने नाम करा लें। लूट-खसोट और मार-काट का उनका सिलसिला शायद अंतहीन हो जाए। ऐसे में अनगिनत दिव्‍या और शीलू दरिंदगी का शिकार हो सकती हैं। अब जबकि हम गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं ऐसे में आडंबर और दूसरों को नसीहत देने की बजाए खुद के बारे में सोचें। यदि हम स्‍वयं ईमानदार हो जाएं तो दो-चार लोगों को इस राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यदि वह सीधे रास्‍ते से बात नहीं मान रहे तो जनसूचना अधिकार कानून को हथियार  बनाकर उनके विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया जा सकता है। आज चुनौतियां ढ़ेर सारी हैं। कहीं आतंकवाद तो कहीं अलगाववाद रोकने की चुनौती  है। भुखमरी के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से निबटने की चुनौती लेकिन यदि हम वाकई लोकतंत्र और गणतंत्र में विश्‍वास करते हैं तो खुद को बुराइयों से बचाना होगा, एक-दूसरे की मदद को हाथ बढ़ाना होगा। तभी वीर शहीदों का सपना पूरा होगा और भारत एक खुशहाल राष्‍ट बन सकेगा। इतना ही नहीं जनप्रतिनिधियों के चयन में भी सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे लोगों का तिरस्‍कार होना चाहिए जो समूची व्‍यवस्‍था के लिए नासूर बन चुके हैं। अपराधियों और दबंग छवि के लोगों को सबक सिखाना होगा तभी गरीबों, वंचितों व जरूरतमंदों को उनका हक मिल सकेगा। आरक्षण देने के बजाए व्‍यवस्‍था में सुधार की जरूरत है जिसमें देश का युवा महती भूमिका निभा सकता है।

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