शुक्रवार, मार्च 19, 2010

अयोध्‍या में बोले कागा हो रामनवमी के दिनवा

गोस्‍वामी तुलासी दास जी ने लिखा है- मध्‍य दिवस अरु शीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा अर्थात मध्‍यान्‍ह काल है न अधिक शीत है और न अधिक धूप हर दृष्टि से पवित्र समय है और लोक को विश्रांत करने वाला है ऐसे पावन काल में प्रभु श्रीरामचन्‍द्र जी का प्राकटयोत्‍व होता है। हर  साल चैत्र मास शुक्‍ल पक्ष नवमी तिथि पर अपरान्‍ह बारह बजे यह उत्‍सव मनाया जाता है। आदि काल से ही अयोध्‍या के इर्द-गिर्द बड़े क्षेत्र में यह लोक पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है। रामनगरी में इस अवसर  पर लाखों लाख  श्रद्धालु अयोध्‍या आते हैं। पावन सलिला सरयू में डुबकी लगाते हैं रामलला के विवादित गर्भगृह सहित मंदिर-मंदिर मत्‍था टेकते हैं। जहां नौ दिनों पूर्व से ही मंदिरों के प्रांगण में प्रत्‍येक शाम बधाई गान की महफिल सजती है वहीं ऐन पर्व पर मंदिरों के गर्भगृह में रामप्राकटय का विशेष अनुष्‍ठान होता है। रामजन्‍मभूमि के अलावा कनक भवन मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होता है।  इस दौरान श्रद्धालु मंदिरों में विराजमान भगवान राम के विग्रह का दर्शन करने के लिए आतुर रहते हैं। श्रीराम चन्‍द्र जी के जन्‍मोत्‍सव में शमिल होने के लिए देश के कोने-कोने और विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। वे जब अयोध्‍या में प्रवेश करते हैं तो सिर पर गठरी और मुख में रामभक्ति का भाव आस्‍था के सागर में हिलारों लेता नजर आता हैं। महिलाएं रामजन्‍म की बधाई गीत गाते हुए अयोध्‍या में प्रवेश करती हैं। वहीं जन्‍मोत्‍सव के दिन वे यह गीत गाना सौभाग्‍य की बात समझती हैं-अयोध्‍या में बोले कागा हो रामनवमी के दिनवा यह गीत इसलिए गाया जाता है कि जब घर में किसी नये मेहमान के पर्दापण का संकेत मिलता है तो कौव्‍वा उस घर की मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करता है। हमें याद है कि बचपन में हम लोग चैत्र रामनवमी के दिन परिवारीजनों और गांव वालों के साथ अयोध्‍या आते थे। सरयू स्‍नान के बाद मंदिरों में दर्शन-पूजन और फिर कढाही चढाने की परम्‍परा भी होती थी। इसके बाद फिर घरों को वापसी होती थी। दो दशक पूर्व बड़ी संख्‍या में श्रद्धालुओं का रेला पैदल ही आता था। नौ दिनों तक चलने वाले उत्‍सव के दौरान अयोध्‍या में उसकी उपस्थिती होती थी। अब जबकि साधनों और संसाधनों का दौर है ऐसे में श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। कई दिनों तक यहां ठहरने के बजाय अधिकांश  लोग अष्‍टमी की संध्‍या तक पहुंच जाते हैं और श्रीराम चन्‍द्र जी के प्राकटयोत्‍सव के बाद मंदिरों में मत्‍था टेक वापस लौट जाते हैं। किंवदंती है कि श्रीराम जन्‍मोत्‍सव पर उनके बाल स्‍वरूप का दर्शन करने देवता भी अयोध्‍या आते हैं। इस दौरान अयोध्‍या में एक पल भी रहना हजारों तीर्थों व असंख्‍य पुण्‍य के बराबर है।

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