शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

कितना पीछे है हमारा सुरक्षा तंत्र

39 घण्‍टें की कोशिशों के बाद शमीम तो पुलिस की गिरफ़त में आ गया लेकिन इस दौरान जो कुछ हुआ और दिखा उससे एक बात तो साफ है कि हमारा सुरक्षा तंत्र कितना पीछे है। ऐसे में आतंकी घ्टनाओं को रोकने के दावे और उनसे मुकाबले की बात करना भी बेमानी होगी। दुनाली बंदूक और चंद कारतूसों के दम पर प्रदेश् की राजधानी लखनऊ में पुलिस को सिर के बल खड़ा रहने को शमीम ने विवश कर दिया। इस घटना में पुलिसजनों का धैर्य और उनकी कार्रवाई वाकई काबिले तारीफ है लेकिन नौसिखिए और अप्रशिक्षित युवक के विरुद्व आपरेशन में इतना वक्‍त लगना गंभीर चिंतनीय है। सुरक्षा एजेंसियों को इस बारे में चिंतन करना चाहिए। इसकी समीक्षा शासन स्‍तर पर भी होना जरूरी है। सुरक्षा व्‍यवस्‍था को लेकर जिस तरह की संजीदगी होनी चाहिए वह वास्‍तव में नहीं है। हर जिले में नहीं लेकिन राजधानी और मण्‍डल मुख्‍यालयों पर ऐसा सुरक्षा दस्‍ता होना चाहिए जो चंद पलों में किसी भी हालात से निपटने में दक्ष हो। उसे कमाण्‍डों स्‍तर का प्रशिक्षण मिलना चाहिए। प्रदेश्‍ा सरकार को चाहिए कि वह जिला मुख्‍यालयों पर भी त्‍वरित कार्रवाई के लिए क्‍यूआरटी का गठन करे जिसमें ऐसे पुलिसकर्मी रखे जाएं जो वाकई में जांबाज हों और उन्‍हें साधन संसाधन भी मुहैया कराया जाना चाहिए। अयोध्‍या, मथुरा, काशी और ताजमहल जैसे अति महत्‍वपूर्ण स्‍थलों की सुरक्षा के लिए किसी भी हालात से निपटने के लिए कमाण्‍डों दस्‍ता तैनात कियख जाना भी जरूरी है। जिस तरह से खुफियख सूचनाएं आ रही हैं, ऐसे में समय में यह बहुत ही आवश्‍यक है। यह बात शासन के उच्‍चाधिकारियों व खुद सीएम को समझना होगा।

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