हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित भूमती गांव पहुंचने पर असल गांव की सुन्दर तस्वीर दिखी। पहाड़ों के बीच बसे इस गांव में कुल छह सौ की आबादी है। यहां से थाना सोलह किलोमीटर की दूरी पर है जबकि हायर सेकेण्डरी स्कूल व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गांव में ही है। हम इस गांव में अपने एक मित्र के रिश्तेदार के साथ पहुंचे। वक्त करीब साढ़े आठ बजे का। गांव के बीच से होकर गुजर रहे मुख्य मार्ग पर इक्का-दुक्का वाहनों की आमदरफ़त जारी थी। बाईं ओर स्थित बिटटू कांसटक्शन के कार्यालय पर आधा दर्जन युवकों की मौजूदगी रही। कार्यालय में पहुंचते ही सबके चेहरे खिल उठे। शहर में रहने वाला उनका भाई-रिश्तेदार जो आया था। कार्यालय में मौजूद सभी युवकों ने हाथ मिलाये और गले मिलकर स्वागत किया। संयोग की बात थी कि उसी दिन मित्र के रिश्तेदार के चचेरे भाई की शादी थी। इस कारण हम लोगों को शादी की रस्म देखने का मौका मिला। करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर जब हम वहां तक पहुंचे तो रंग-बिरंगी रोशनी से मकान जगमगा रहा था। महिलाएं, बच्चे बूढ़े हर कोई खुशी से सराबोर था। हम लोगों के साथ रहे गांव के युवाओं ने पद के हिसाब से सबके पांव छुए व गले मिलकर खुशियां जताईं। बगल ही कच्चे चूल्हे पर भोजन पक रहा था। हम लोगों के पहुंचने तक अधिकांश लोग भोजन कर वापस लौट चुके थे। करीब आधा घंटे बाद भोजन का नम्बर आया। छोटे से खेत में बिछी टाटपटटी पर
पर हम लोग बैठे तो पत्तल मिलने के साथ ही खाना भी परोसा जाने लगा। करीब दर्जन भर लोगों को खाना परोसने का कार्य एक ही व्यक्ति कर रहा था शायद वह ही गांव का खानशामा था। पहले चावल फिर सब्जी, फिर कढी और दाल तथा सब्जी के साथ ही मीठी बुदियां भी थीं। सबसे अहम बात तो यह थी कि रोटी का जुगाड नहीं था। पूछने पर पता चला कि समारोहों में यहां इसी तरीके की व्यवस्था रहती है। चावल के साथ विभिन्न तरह की दालें व सब्जियां परोसी जाती हैं। भोजन के बाद नम्बर आया विश्राम का। इसके लिए हम लोगों को करीब पांच सौ मीटर दूर बिटटू भाई के घर जाना पड़ा। करीब तीस लाख रुपये की लागत से उन्होंने सिर्फ मकान नहीं बनाया था बल्कि अपने सपने को सच किया था। हवा, पानी स्वच्छता और रसोई सब कुछ बिल्कुल करीने से। रात में बातचीत के दौरान बिटटू भाई ने बताया कि उनके गांव में शादी हो या मरण, हर छोटा बड़ा शामिल होता है जिसकी जो डयूटी लगती है उसे पूरी करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि सबसे कष्टकारक क्षण अंतिम संस्कार के होते हैं कारण अर्थी सिर्फ दो कंधों पर ही श्मशान घाट को जाती है। ऐसा इसलिए कि पहाड़ों पर चार लोगों के चलने की व्यवस्था नहीं रहती। अंतिम संस्कार के लिए हर कोई हाथ में लकडि़यां लेकर जाता है। वे बोले कि यहां क्राइम नाम की कोई चीज नहीं है। आपसी भाईचारा इस कदर कायम है कि घर से निकलने के बाद हर कोई अपने बडों का पांव छूकर आशीर्वाद लेता है। गांव में ही जरूरत के सारे सामान मिल जाते हैं इसलिए बाजारों तक दौड़ लगाने से फुर्सत रहती है। शांति और सौहार्द कि मिशाल है भूमती गांव यदि यूपी भी ऐसे गांव हो जायं तो शायद खुशहाली और समृद्धि कई गुना बढ़ जायेगी- सैर जारी
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